सपनों में, आना जाना बढ़ गया है poems in hindi

 सपनों में, 

आना जाना 

बढ़ गया है 

तुम्हारा


तुम्हें भी शायद

हिचकियाँ

सताती होंगी


सर्दियां

गले से लगा लेती 

धूप देख तुम्हें

मुस्कुराती होंगी


पावों में 

बेजान सी पड़ी रहती होंगी

बिछियां तुम्हारी

उन्हें ही ताकता

बैठा सोच मुझे

हर सांस,

निखर सी जाती होंगी


जिंदगी के

कितने ही

पहलू ,

कितने ही हिस्सों पर

अनजान रह कर भी

खिल आते हैं हम

बेख़बर मैं

बेख़बर तुम

बस यूं ही

एक दूसरे से 

मिल आते हैं हम 


सुनो

सपनों में, 

आना जाना 

बढ़ गया है 

तुम्हारा


तुम्हें भी 

बेशक

हिचकियाँ,

बेहद 

सताती होंगी


कोई शाम 

चाय पर 

मिलती होंगी


कोई सुबह

बिंदिया लगा 

मुस्कराती होंगी


सस्ते झुमकों से

कोई वास्ता नहीं अब

फिर भी 

हाथों में कुछ देर

थाम उसे

तुम मुझसे मिल 

आती होगी


खैर, अब उम्र भर

है यूँ ही खिलना हमें


कभी ख़्वाब बन

कभी ख़याल

एक दूसरे के आंगन 

है मिलना हमें


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