टूटे बिखरे सपनों के
नुकीले टुकड़े
चुभे चुभे से हैं
जागती आंखों में,
थकी थकी सी,
बातें हैं अनकही
कोई सँग नहीं,
वो बात बताने के लिए
हवाएं जैसे अब,
पहचानती नहीं
धूप भी मुझे,
अपना मानती नहीं
तनहा छोड़ दिया है
तब्दीलियों ने ज़िन्दगी
मोड़ दिखे
तो फिर मैं लौट जाऊं
या फिर कोई
ढूंढ यारों की
छांव ला दो,
पीपल,तालाब
बेतरतीब लोग,
फिर वो चहकते
गांव ला दोस्त
खुशी मेहमान है
तकलीफ घर है मेरा
हार से दोस्ती है
जीत डर है मेरा
मत तो उम्मीद
मुझे मुस्कुराने की
ये परेशानियां ही
अब सफर है मेरा ...
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