Shrimad bhagwat geeta In Hindi|भगवत गीता की संपूर्ण जानकारी

 Shrimad Bhagwat Geeta In Hindi-:जय श्री कृष्णा मित्रों आज हम इस पोस्ट के माध्यम से भगवत गीता के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे इस पोस्ट मैं आप महाभारत युद्ध में भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए ज्ञान के बारे में व्याख्या करने वाले हैं इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपको भगवत गीता के बारे में बहुत कुछ जानकारी प्राप्त होगी


हम इसमें जानेंगे कि गीता में कुल कितने अध्याय कितने श्लोक और किन फलों को को हमें पढ़ना चाहिए अपने जीवन में हर रोज इन सभी बातों से हम बात करेंगे पोस्ट पूरी पढ़ें तो ही आप को ज्ञान प्राप्त हो सकती है तो चलिए स्टार्ट करते हैं इस पोस्ट को धन्यवाद


  • श्रीमद भगवत गीता प्रथम अध्याय -: गीता के प्रथम अध्याय का नाम अर्जुन विषाद योग कहते हैं और इस अध्याय में कूल 47 श्लोक मौजूद है प्रथम अध्याय के माध्यम से अर्जुन श्री कृष्ण से पूछते हैं कुरुक्षेत्र में मौजूद उनके सगे संबंधी को देखकर अर्जुन के मन में उठे सवालों के उत्तर श्री कृष्ण देते हैं और इसे संजय के माध्यम से धृतराष्ट्र को सुनाया जाता है

 धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।

मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥

 

भावार्थ : धृतराष्ट्र बोले- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छावाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?



  • श्रीमद भगवत गीता द्वितीय अध्याय-: गीता के दूसरे अध्याय का नाम ज्ञान योग के नाम से जाना जाता है और इसमें कुल 72 श्लोक मौजूद है वास्तविक यह अध्याय गीता का संपूर्ण परिचय इस अध्याय में प्रथम बार पूर्ण जन्म का उल्लेख मिलता है इस अध्याय में गीता के संपूर्ण अध्याय का उल्लेख है


तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्‌ ।

विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः

 

भावार्थ : संजय बोले- उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान मधुसूदन ने यह वचन कहा॥



  •  श्रीमद भागवत गीता तृतीय अध्याय -: भगवत गीता के तीसरे अध्याय का नाम कर्म योग हैं इस अध्याय में मनुष्य के कर्मों के बारे में बताया गया है किस अध्याय में 43 श्लोक मौजूद है


व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे ।

तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम्‌ ॥

 

भावार्थ : आप मिले हुए-से वचनों से मेरी बुद्धि को मानो मोहित कर रहे हैं। इसलिए उस एक बात को निश्चित करके कहिए जिससे मैं कल्याण को प्राप्त हो जाऊँ॥


  • श्रीमद् भागवत गीता चौथा अध्याय-: भगवत गीता के चौथे अध्याय का नाम ज्ञान कर्म सन्यास योग है कुल 42 श्लोक इस अध्ययन में मौजूद है इस अध्याय में श्री कृष्ण अपने संपूर्ण जन्मों के बारे में योग के माध्यम से बताते हैं


इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्‌ ।

विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्‌ ॥

 

भावार्थ : श्री भगवान बोले- मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा॥


  • श्रीमद्भागवत गीता 5 अध्याय-: इस अध्याय का नाम कर्म सन्यास योग है और इस अध्याय में 29 श्लोक मौजूद है

सन्न्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि ।

यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम्‌ ॥

भावार्थ : अर्जुन बोले- हे कृष्ण! आप कर्मों के संन्यास की और फिर कर्मयोग की प्रशंसा करते हैं। इसलिए इन दोनों में से जो एक मेरे लिए भलीभाँति निश्चित कल्याणकारक साधन हो, उसको कहिए॥


  • श्रीमद्भागवत गीता छठा अध्याय-: गीता के छठे अध्याय का नाम आत्म संयम योग है और इस अध्याय में 47 श्लोक मौजूद है इस अध्याय में मनुष्य के धैर्य के बारे में श्री कृष्ण अर्जुन को ज्ञान देते हैं


अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः ।

स सन्न्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः ॥

 

भावार्थ : श्री भगवान बोले- जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है और केवल अग्नि का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं है तथा केवल क्रियाओं का त्याग करने वाला योगी नहीं है॥


  • श्रीमद्भागवत गीता 7 अध्याय-: दिखा गीता के इस अध्याय का नाम ज्ञान विज्ञान योग है और इसमें कॉल 30 श्लोक मौजूद है 


 मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः ।

असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ॥

 

भावार्थ : श्री भगवान बोले- हे पार्थ! अनन्य प्रेम से मुझमें आसक्त चित तथा अनन्य भाव से मेरे परायण होकर योग में लगा हुआ तू जिस प्रकार से सम्पूर्ण विभूति, बल, ऐश्वर्यादि गुणों से युक्त, सबके आत्मरूप मुझको संशयरहित जानेगा, उसको सुन॥


  • श्रीमद्भागवत गीता 8 अध्याय-: भगवत गीता के इस अध्याय का नाम अक्षर ब्रह्म योग है इसमें कुल 28 श्लोक मौजूद हैं


अर्जुन उवाच

किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं पुरुषोत्तम ।

अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते৷

 

भावार्थ : अर्जुन ने कहा- हे पुरुषोत्तम! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत नाम से क्या कहा गया है और अधिदैव किसको कहते हैं॥


  • श्रीमद्भागवत गीता 9 अध्याय-: इस अध्याय का नाम राजविद्याराजगुह्ययोग है और इसमें कुल 34 श्लोक मौजूद है


इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे ।

ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्‌ ॥

 

भावार्थ : श्री भगवान बोले- तुझ दोषदृष्टिरहित भक्त के लिए इस परम गोपनीय विज्ञान सहित ज्ञान को पुनः भली भाँति कहूँगा, जिसको जानकर तू दुःखरूप संसार से मुक्त हो जाएगा॥



  • श्रीमद्भागवत गीता 10 अध्याय-: इस अध्याय का नाम विभूति योग है और इसमें कुल 42 श्लोक मौजूद है


भूय एव महाबाहो श्रृणु मे परमं वचः ।

यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया ॥

 

भावार्थ : श्री भगवान्‌ बोले- हे महाबाहो! फिर भी मेरे परम रहस्य और प्रभावयुक्त वचन को सुन, जिसे मैं तुझे अतिशय प्रेम रखने वाले के लिए हित की इच्छा से कहूँगा॥


  • श्रीमद्भागवत गीता 11 अध्याय-: इस अध्याय का नाम विश्वरूप दर्शन योग है और इसमें कुल 55 श्लोक मौजूद है


मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसञ्ज्ञितम्‌ ।

यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ॥

 

भावार्थ : अर्जुन बोले- मुझ पर अनुग्रह करने के लिए आपने जो परम गोपनीय अध्यात्म विषयक वचन अर्थात उपदेश कहा, उससे मेरा यह अज्ञान नष्ट हो गया है॥


  • श्रीमद्भागवत गीता 12 अध्याय-: इस अध्याय का नाम भक्ति योग है और इसमें कुल 20 श्लोक मौजूद है


एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते ।

ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः ॥

 

भावार्थ : अर्जुन बोले- जो अनन्य प्रेमी भक्तजन पूर्वोक्त प्रकार से निरन्तर आपके भजन-ध्यान में लगे रहकर आप सगुण रूप परमेश्वर को और दूसरे जो केवल अविनाशी सच्चिदानन्दघन निराकार ब्रह्म को ही अतिश्रेष्ठ भाव से भजते हैं- उन दोनों प्रकार के उपासकों में अति उत्तम योगवेत्ता कौन हैं?॥


  • श्रीमद्भागवत गीता 13 अध्याय -: इस अध्याय का नाम क्षेत्रक्षेत्रज्ञ विभाग योग है और इस अध्याय में कुल 34 श्लोक मौजूद हैं


इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते।

एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः॥

 

भावार्थ : श्री भगवान बोले- हे अर्जुन! यह शरीर 'क्षेत्र' (जैसे खेत में बोए हुए बीजों का उनके अनुरूप फल समय पर प्रकट होता है, वैसे ही इसमें बोए हुए कर्मों के संस्कार रूप बीजों का फल समय पर प्रकट होता है, इसलिए इसका नाम 'क्षेत्र' ऐसा कहा है) इस नाम से कहा जाता है और इसको जो जानता है, उसको 'क्षेत्रज्ञ' इस नाम से उनके तत्व को जानने वाले ज्ञानीजन कहते हैं॥


  • श्रीमद्भागवत गीता 14 अध्याय -: इस अध्याय का नाम गुण त्रय विभाग योग है इस अध्याय में कुल 27 श्लोक मौजूद है


परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानं मानमुत्तमम्‌ । 

यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः ॥

 

भावार्थ : श्री भगवान बोले- ज्ञानों में भी अतिउत्तम उस परम ज्ञान को मैं फिर कहूँगा, जिसको जानकर सब मुनिजन इस संसार से मुक्त होकर परम सिद्धि को प्राप्त हो गए हैं॥


  • श्रीमद्भागवत गीता 15 अध्याय-: इस अध्याय का नाम पुरुषोत्तम योग है और इसमें कुल 20 श्लोक मौजूद है


ऊर्ध्वमूलमधः शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्‌ ।

छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्‌ ॥

 

भावार्थ : श्री भगवान बोले- आदिपुरुष परमेश्वर रूप मूल वाले (आदिपुरुष नारायण वासुदेव भगवान ही नित्य और अनन्त तथा सबके आधार होने के कारण और सबसे ऊपर नित्यधाम में सगुणरूप से वास करने के कारण ऊर्ध्व नाम से कहे गए हैं और वे मायापति, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही इस संसाररूप वृक्ष के कारण हैं, इसलिए इस संसार वृक्ष को 'ऊर्ध्वमूलवाला' कहते हैं) और ब्रह्मारूप मुख्य शाखा वाले (उस आदिपुरुष परमेश्वर से उत्पत्ति वाला होने के कारण तथा नित्यधाम से नीचे ब्रह्मलोक में वास करने के कारण, हिरण्यगर्भरूप ब्रह्मा को परमेश्वर की अपेक्षा 'अधः' कहा है और वही इस संसार का विस्तार करने वाला होने से इसकी मुख्य शाखा है, इसलिए इस संसार वृक्ष को 'अधःशाखा वाला' कहते हैं) जिस संसार रूप पीपल वृक्ष को अविनाशी (इस वृक्ष का मूल कारण परमात्मा अविनाशी है तथा अनादिकाल से इसकी परम्परा चली आती है, इसलिए इस संसार वृक्ष को 'अविनाशी' कहते हैं) कहते हैं, तथा वेद जिसके पत्ते (इस वृक्ष की शाखा रूप ब्रह्मा से प्रकट होने वाले और यज्ञादि कर्मों द्वारा इस संसार वृक्ष की रक्षा और वृद्धि करने वाले एवं शोभा को बढ़ाने वाले होने से वेद 'पत्ते' कहे गए हैं) कहे गए हैं, उस संसार रूप वृक्ष को जो पुरुष मूलसहित सत्त्व से जानता है, वह वेद के तात्पर्य को जानने वाला है। (भगवान्‌ की योगमाया से उत्पन्न हुआ संसार क्षणभंगुर, नाशवान और दुःखरूप है, इसके चिन्तन को त्याग कर केवल परमेश्वर ही नित्य-निरन्तर, अनन्य प्रेम से चिन्तन करना 'वेद के तात्पर्य को जानना' है)॥



  • श्रीमद्भागवत गीता 16 अध्याय-: इस अध्याय का नाम दैवासुरसम्पद्विभागयोग है इस अध्याय में 16 श्लोक मौजूद है


 अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः। 

दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्‌॥ 

 

भावार्थ : श्री भगवान बोले- भय का सर्वथा अभाव, अन्तःकरण की पूर्ण निर्मलता, तत्त्वज्ञान के लिए ध्यान योग में निरन्तर दृढ़ स्थिति (परमात्मा के स्वरूप को तत्त्व से जानने के लिए सच्चिदानन्दघन परमात्मा के स्वरूप में एकी भाव से ध्यान की निरन्तर गाढ़ स्थिति का ही नाम 'ज्ञानयोगव्यवस्थिति' समझना चाहिए) और सात्त्विक दान (गीता अध्याय 17 श्लोक 20 में जिसका विस्तार किया है), इन्द्रियों का दमन, भगवान, देवता और गुरुजनों की पूजा तथा अग्निहोत्र आदि उत्तम कर्मों का आचरण एवं वेद-शास्त्रों का पठन-पाठन तथा भगवान्‌ के नाम और गुणों का कीर्तन, स्वधर्म पालन के लिए कष्टसहन और शरीर तथा इन्द्रियों के सहित अन्तःकरण की सरलता ॥


  • श्रीमद्भागवत गीता 17 अध्याय-: इस अध्याय का नाम श्रद्धात्रयविभागयोग है और इस अध्याय कुल 28 श्लोक मौजूद हैं


 ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विताः।

 तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमः॥ 

 

भावार्थ : अर्जुन बोले- हे कृष्ण! जो मनुष्य शास्त्र विधि को त्यागकर श्रद्धा से युक्त हुए देवादिका पूजन करते हैं, उनकी स्थिति फिर कौन-सी है? सात्त्विकी है अथवा राजसी किंवा तामसी? ॥


  • श्रीमद्भागवत गीता 18 अध्याय-: इस अध्याय मोक्षसंन्यासयोग है और इसमें कुल 78 श्लोक मौजूद है इस अध्याय में जीवन के अंत के बारे में बताया गया है


 सन्न्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्‌ ।

 त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन ॥ 

 

भावार्थ : अर्जुन बोले- हे महाबाहो! हे अन्तर्यामिन्‌! हे वासुदेव! मैं संन्यास और त्याग के तत्व को पृथक्‌-पृथक्‌ जानना चाहता हूँ ॥



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